काठमाडौं, ११ जेठ । बिहीबार संसारको रक्षक भगवान विष्णुलाई समर्पित छ। यस दिन देवगुरु बृहस्पतिको पनि पूजा गरिन्छ । बिहीबार भगवान् विष्णु र देवगुरु बृहस्पतीको पूजा–आराधना गर्नाले मनपर्ने फल प्राप्त हुने धार्मिक विश्वास छ ।
यसका साथै कुण्डलीमा बृहस्पति ग्रह बलवान छ। ज्योतिषीहरूका अनुसार कुण्डलीमा बृहस्पति बलवान भएमा व्यक्तिले मनपर्ने काम प्राप्त गर्छ। विवाहित महिलाले सुख, सौभाग्य र सन्तान प्राप्त गर्छन् भने अविवाहितको छिट्टै विवाह हुन्छ ।
त्यसैले ज्योतिषीहरूले महिलाहरूलाई बिहीबार व्रत राख्न सल्लाह दिन्छन्। यदि तपाई पनि भगवान विष्णुको कृपा प्राप्त गर्न चाहनुहुन्छ भने बिहीबारको दिन पूजाको समयमा बृहस्पती चालिसाको पाठ र विष्णुजीको आरती गर्नुहोस्।
श्री बृहस्पति देव चालीसा
दोहा
प्रनवउँ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।
श्री गणेश शारद सहित, बसों हृदय में आन॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरु स्वामी सुजान।
दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥
चौपाई
जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर॥
यंत्र-मंत्र विज्ञान के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥
जब जब होई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी॥
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धर्म की रक्षा॥
अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तान चंद पिता कर नामा॥
शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥
रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख॥
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥
जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना॥
नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरूप गुरु गोरवान्वित॥
एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥
चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी॥
पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥
अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का॥
युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी॥
अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण॥
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा॥
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता॥
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर॥
रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥
अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया॥
वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे॥
चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥
चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं॥
मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥
प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन॥
निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥
पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा॥
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥
श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा॥
जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥
आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥
जगदीश्वर जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥