काठमाडौं,१८ मंसिर । सोमबार भगवान शिवको पूजा गर्न समर्पित छ । यस दिन भोलेनाथको साँचो भक्तिपूर्वक पूजा गर्नाले आफ्ना भक्तहरूको सबै मनोकामना पूरा हुन्छ।
यस्तो अवस्थामा मानसिक समस्या वा आर्थिक अभावबाट ग्रस्त व्यक्तिहरूले अवश्य शिवको पूजा गर्नुपर्छ। साथै सोमबारको दिन यहाँ दिइएको शिवाष्टक स्तोत्रमको पाठ गर्नुपर्दछ, जसले धेरै लाभदायक हुन्छ।
त्यसैले पढौं–
।। शिवाष्टक स्तोत्र ।।
जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करुणाकर करतार हरे।
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि सुखसार हरे ।।
जय शशि शेखर, जय डमरूधर, जय जय प्रेमागर हरे।
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित, अनन्त, अपार हरे।।
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे ।
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे।।
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर, भीमेश्वर, जगातार हरे।
काशी पति श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय, अघहार हरे।।
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युञ्जय अविकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय महेश, जय जय भवेश, जय आदिदेव, महादेव विभो।
किस मुख से हे गुणातीत, प्रभु तव अपार गुण वर्णन हो ।।
जय भवकारक तारक, हारक, पातक(दारक शिव शम्भो।
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर, प्रेम(सुधाधर दया करो।।
पार लगा दो भवसागर से, बन कर कर्णाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
जय मनभावन, जय पतितपावन, शोक नशावन शिवशम्भो।
विपद विदारन, अधम उद्धारन, सत्य सनातन शिवशम्भो।।
सहज वचनहर, जलज नयनवर, धवल(वरन(तन शिवशम्भो ।
मदन(कदन(कर, पाप(हरन(हर, चरन(मनन(धन शिवशम्भो ।।
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे ।।
भोलानाथ कृपालु, दयामय, औढरदानी शिव योगी।
निमिष मात्र में देते हैं, नव निधि मनमानी शिव योगी।।
सरल हृदय, अति करुणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी ।
भक्तो पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी ।।
स्वयं अकिंचन, जन मन रंजन, पर शिव परम उदार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
आशुतोष १ इस मोहमायी निद्रा से मुझे जगा देना।
विषम वेदना से विषयों की मायाधीश छुड़ा देना ।।
रूप सुधा की एक बूंद से जीवन मुक्त बना देना।
दिव्य ज्ञान भण्डर युगल चरणों की लगन लगा देना ।।
एक बार इस मन मन्दिर में कीजे पद(संचार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
दानी हो दो भिक्षा में, अपनी अनुपायनी भक्ति प्रभो।
शक्तिमान हो दो अविचल, निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो।।
त्यागी हो दो इस असार, संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो।
परमपिता हो दो तुम अपने, चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।।
स्वामी हो निज सेवक की, सुन लेना करुण पुकार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।
तुम बिन ‘बेकल’ हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे।
चरण शरण की बांह गहो, हे उमारमण प्रियकन्त हरे।।
विरह व्यथित हूँ दीन दुस्खी हूँ, दीनदायल अनन्त हरे।
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमन्त हरे।।
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करो विचार हरे।
पारवती पति हर हर शम्भो, पाहि पाहि दातार हरे।।